गरबा कोई मौज-मस्ती का खेल नहीं है।

गरबा कोई मौज-मस्ती का खेल नहीं है। यह शक्ति देने वाली मां की उपासना है। महिलाएं भी शालीनता दिखाएं। 

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28 सितम्बर को अमावस्या के साथ ही श्राद्ध पक्ष समाप्त हो गया और 29 सितम्बर से नवरात्रा की शुरुआत हो जाएगी। भारत की सनातन संस्कृति में नवरात्र के 9 दिनों तक शक्ति देने वाली मां की उपासना करने वाला माना जाता है। घर परिवार और समाज में मां की क्या स्वरूप है, इसे सब जानते हैं। चूंकि अब 9 दिनों तक मां की उपासना होगी, इसलिए जगह जगह गरबा के कार्यक्रम भी होंगे। हालांकि गरबा नृत्य गुजरात का लोक नृत्य है, लेकिन बदलते माहौल में पूरे देश में नवरात्र में गरबा डांस होने लगे हैं। गली मोहल्लों से लेकर सार्वजकि स्थलों तथा बड़ी बड़ी होटलों तक में गरबा के नृत्य होंगे। अजमेर से लेकर अहमदाबाद और दिल्ली से मुम्बई तक तैयार पूरी हो चुकी है। क्रेज इतना है कि युवक युवतियों ने गरबा नृत्य की कोचिंग तक ली है। नृत्य की प्रतियोगिता जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। कई संस्थाओं ने फिल्मी कलाकारों को बुलाकर गरबा नृत्य पर टिकिट भी लगा दिया है। सवाल उठता है कि जब हम नवरात्र को शक्ति की उपासना मानते हैं तब कॉमर्शियल रवैया क्यों? भारत की सनातन संस्कृति का पुरजोर प्रदर्शन होना चाहिए, लेकिन इसमें मर्यादाओं का भी ख्याल रखा जाए। यह माता-पिता का भी दायित्व है कि उनके बच्चे सभ्य पौशाक पहने। आमतौर पर देखा गया है कि गरबा नृत्य करने वाली लड़कियां पश्चिमी संस्कृति के कपड़े पहनती है। सवाल किसी की नजर के दोष का नहीं है? सवाल हमारी संस्कृति का है। हम जब नवरात्र को उपासना के दिन मानते हैं तो फिर नृत्य के दौरान शरीर दिखाने वाले कपड़े क्यों पहनते हैं? वैसे भी जब लड़कियां सार्वजनिक स्थानों पर नृत्य करती हैं तो उन्हें कपड़े तो हमारी संस्कृति के अनुरूप ही पहनने चाहिए। अनेक स्थानों पर देखा गया है कि गरबा नृत्य के दौरान फिल्मों के अश्लील गाने बजाए जाते हैं। यह पूरी तरह गलत हैं। गरबा के आयोजनों में सिर्फ मां की भक्ति वाले धार्मिक गाने बजने चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (28-09-19)
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